Sunday, June 19, 2016

नफरत








नफरतों ने कितनों को लुटा,
किसी का घर तो किसी का शहर हैं छुटा
बईमानो के हाथों में ,मजबूर है बीका
नफरतों के बाजार में ,जमीर कहाँ टीका
मासूम की मुस्कुराहट छिनी और इससे क्‍या उम्मीद करो
मत पडो गहरा हैं ये समुद्र किनारे की क्‍या उम्मीद करो
नफरत से बिखरते प्‍यार का पीछा करो
लटु गया जो इससे, उसका घर आबाद करो
नफरतों के जहर से , अब ना इंनसानियत पे घांव करो
इंसान ही इंसान का कातिल, ऐ-मालिक अब तुम्ही इसका हीसाब करो
नफरत को अन्‍दर से निकाल बाहर करो
हसरत को इंनसानियत पर कुर्बान करो
:-अभिषेक शर्मा
(नफरत आज इस हद तक बड़ गयी हैं काई नफरत के चलते किसी का भी बुरा करे
किस ने हसरत बना ली किसको मिटाने की और कहीं नफरत आतंक में पनपती ,कही प्‍यार में)

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