क्यो बदल जाती हैं
जाने कहाँ से उत्पन्न हो जाती हैं
एक दिन थी कुछ छोटी
फिर कैसे ये विशाल बन जाती है
कभी मन में प्रीत जगाती हैं
कभी आपस में ही जलाती हैं
इच्छाओं का कोई घर नही
मस्तिष्क से उतर कर मन में समा जाती हैं
जाने कहाँ से उत्पन्न हो जाती हैं
फिर कैसे ये विशाल बन जाती है
कभी आपस में ही जलाती हैं
मस्तिष्क से उतर कर मन में समा जाती हैं
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