Tuesday, September 13, 2016

मानव हित



जीवन तो सम्‍पूर्ण प्रेम का मेला है। फिर क्यों खड़ा तू दूर अपनों से अकेला है ।
कितने महान कर्मो का यह दर्पण है। मानव हित और ईश्‍वर भक्‍ति में ही सर्म‍पण है ।
पवित्र रख मन यह तो देव निवास है। मत कर अधर्म होता फिर बड़ा ही विनाश है ।
कलियुग का भी बडा विचित्र प्राणी है। अहंकार माया से भरा क्रोध में इसकी वाणी है।

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