Wednesday, March 15, 2017
Sunday, January 22, 2017
परमेश्वर
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एक दिन दूर ये कलियुग का अंधेरा होगा
जब दिशा बदलेगी तो एक सबेरा होगा
अस्त होगी झूठी चमक मोह माया की
उस दिन धरती पर प्रेम का ही घेरा होगा ।
घनघोर घटा मद मस्त नीला अम्बर है
शीतल प्रवाह मे मोहित मन की लहर है
मिट गया अंधेरा उदय ज्ञान का सूरज
आनंदित मन समक्ष प्रत्यक्ष परमेश्वर है।
_________________अभिषेक शर्मा
अनुकूल
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क्रोध, मोह, माया जीवन का अन्धकार है
कठिन पथ परिश्रम से प्राप्त अधिकार है
सत्य का मार्ग होता है सदा ही अनुकूल
अहिंसा और मानव हित जीवन का सार है
क्रोध, मोह, माया जीवन का अन्धकार है
कठिन पथ परिश्रम से प्राप्त अधिकार है
सत्य का मार्ग होता है सदा ही अनुकूल
अहिंसा और मानव हित जीवन का सार है
जीवन तो प्रभु प्रेम का उपहार है
अलमोल मुल्य न कोई प्यापार है
समय के अनुरूप है चलना हमको
प्रतिकूल दिशा से जीवन की हार है
_____________अभिषेक शर्मा
अलमोल मुल्य न कोई प्यापार है
समय के अनुरूप है चलना हमको
प्रतिकूल दिशा से जीवन की हार है
_____________अभिषेक शर्मा
चुनौती
गलतियों से सीख कर जीवन को मैं पहचान गया
विफलता के अज्ञान को समय अनुरूप जान गया
नही डर मुझ को जीवन की आगामी चुनौती से
अनुभव के क्षणों से जीवन पथ का हो भान गया
सफलता के कार्य से मिले वो अपना अधिकार है
कठिनाई के क्षणों में देखो जीवन की ये हुंकार है
बीत गया वो गत, भविष्य को तुम्हे है निखारना
छोड दो अपना झूठा अहंकार जीवन की ये हार है
अभिषेक शर्मा
पिरामिड
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1
है
मन
चंचल
भटकता
न ठहरता
ओझल है लक्ष्य
जीवन की समाप्ति
2
है
जन
विचार
दिशा ज्ञान
भाग्य की रेखा
निरंतर लुप्त
व्यर्थ मानव धर्म
3
है
सेवा
दायित्व
मानवता
चरित्रावान
करूणा हदय
सार्थक हो जीवन
....अभिषेक शर्मा
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1
है
मन
चंचल
भटकता
न ठहरता
ओझल है लक्ष्य
जीवन की समाप्ति
2
है
जन
विचार
दिशा ज्ञान
भाग्य की रेखा
निरंतर लुप्त
व्यर्थ मानव धर्म
3
है
सेवा
दायित्व
मानवता
चरित्रावान
करूणा हदय
सार्थक हो जीवन
....अभिषेक शर्मा
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Thursday, January 19, 2017
Sunday, January 8, 2017
"सवेरा"
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नये वर्ष का एक नया सफर है
बीते गम अब खुशियों की लहर है
अपनो के दिलों मे प्यार का पहरा
जीवन के रंगों का हर रंग सुनहरा
चमक रोशनी की जैसे हो दीवाली
हर पल जीवन मे छाये हरियाली
सारी उलझनों के हुऐ समझौते
प्यार के आँसू पलकों को भिगोते
प्रेम के दीपक से मिटा अन्धेररा
प्रभात की किरण से हुआ सवेरा
"सवेरा"
____ _______अभिषेक शर्मा
गुल्लक
" गुल्लक "
बन्द देह की गुल्लक में अपनी काया है
छोडो दौलत का मोह झूठी यह माया है
हसरतों से उपर के सपने होते है झूठे
लालच से उत्पन्न हुई ये कैसी छाया है
निर्धन को न मिलती दो वक्त की रोटी
खेल दौलत का यह किसने सिखाया है
आसमां की चादर में लिपटी ये गरीबी
घर धनवालों का आज किसने सजाया है
मासूमियत भी करती हुई बाल मजदुरी
घूट जहर का मासूमों को किसने पिलाया है
__________________अभिषेक शर्मा
छोडो दौलत का मोह झूठी यह माया है
हसरतों से उपर के सपने होते है झूठे
लालच से उत्पन्न हुई ये कैसी छाया है
निर्धन को न मिलती दो वक्त की रोटी
खेल दौलत का यह किसने सिखाया है
आसमां की चादर में लिपटी ये गरीबी
घर धनवालों का आज किसने सजाया है
मासूमियत भी करती हुई बाल मजदुरी
घूट जहर का मासूमों को किसने पिलाया है
__________________अभिषेक शर्मा
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